उत्तराखंड के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री माननीय श्री सतपाल महाराज जी ने इस सुझाव को गंभीरता से लिया इसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद |
"गढ़वाली-कुमाऊनी भाषाओ के प्रचार-प्रसार के लिए सोच(SOCH)संस्था का उत्तराखंड सरकार को एक महत्वपूर्ण सुझाव"
सेवा में ,
आदरणीय श्री सतपाल महाराज जी
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री
उत्तराखंड
सरकार
विषय - उत्तराखंड में गढ़वाली एवं कुमाऊनी भाषाओ के आई.वी.आर ( इंटरैक्टिव वाइस रिस्पांस ) की शुरुवात |
महोदय,
चरण स्पर्श प्रणाम
महाराज जी आपके गढ़वाली एवं कुमाऊनी भाषा को राज्य भाषाओ का दर्जा दिलाने के प्रयास को कौन नहीं जानता , औरआपका अपनी भाषाओ के प्रति प्रेम भी किसी से छिपा नहीं है |एक उत्तराखंडी होने के नाते ,आपकी तरह अपनी भाषाओ का और संस्कृति का प्रेमी होने के नाते ,इस उम्मीद से ये पत्र आपको लिख रहा हूँ की शायद अपनी भाषाओ के प्रचार -प्रसार के लिए आपको मेरा ये सुझाव जरूर पसंद आएगा , और मुझे लगता है की पूर्ण बहुमत वाली इस सरकार को ये पत्र लिखने का अच्छा अवसर है |
असल में कुछ दिन पहले एक दिन मैं दुबई से मुंबई अपने दोस्त को फोन कर रहा था लेकिन मेरे मित्र का फोन बंद था तो वंहा से कम्प्यूटर आई.वी.आर (इंटरैक्टिव वाइस रिस्पांस ) की मराठी भाषा में आवाज़ सुनाई दी तो मस्तिष्क में एक विचार आया की
क्या हम हमारी गढ़वाली -कुमाऊनी भाषा का आई.वी.आर उत्तराखंड में नहीं कर सकते? बस इसी एक विचार को मन में रखकर आपको ये पत्र लिख रहा हूँ |
लगभग हर एक राज्य के पास उनकी भाषाओ के आई.वी.आर ( इंटरैक्टिव वाइस रिस्पांस ) मौजूद हैं तो हमारे पास क्यों नहीं ? कितना सुखद एहसास होगा अगर हम उत्तराखंडवासी भी दूसरे छोर से फोन के बंद होने पर, व्यस्त होने पर या किसी अन्य कारण से अपनी भाषाओ का आई.वी.आर सुन सकेंगे | इसके साथ-साथ दूसरे राज्यों के लोग भी जब उत्तराखंड में फ़ोन करेंगे तो उन्हें कम से कम उन्हें हमारी भाषाओ का पता लगेगा | हमारी भाषा का प्रचार भी होगा और लोग हमारी भाषाओ के बारे में भी जानेंगे |जैसा की आप जानते हैं की उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण है और इन ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग मोबाइल फ़ोन का उपयोग करते हैं और जिसमे कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हे हिंदी /अंग्रेजी समझने में समस्या होती है । कितना अच्छा होगा जब यही लोग किसी भी जानकारी को अपनी बोली-भाषा में समझ सकेंगे और इसी वजह से उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे युवक/युवतियों को भी रोजगार मिलेगा ।
गढ़वाली- कुमाउँनी भाषा में आई.वी. आर होने के फायदे:
1. गढ़वाली - कुमाऊनी भाषाओ का प्रचार-प्रसार होगा |
2. दूसरे राज्य के लोगो को हमारी भाषाओ के बारे में पता लगेगा |
3. यह कदम गढ़वाली- कुमाऊनी को राज्य भाषा का दर्जा एवं संविधान के आठवे अनुसूची में शामिल करने में सहायक सिद्ध होगा।
4. ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे लोगो को ( जो हिंदी/अंग्रेजी नहीं समझते) अपनी भाषा में जानकारिया प्राप्त करने में आसानी होगी ।
5. मोबाईल कम्पनिया भी अपने ग्राहको अच्छी ग्राहक सेवा दे पाएंगी।
6. ग्राहक जब ग्राहक सेवा अधिकारी से गढ़वाली या कुमाऊनी में बात करना चाहेंगे तो वो कर पाएंगे और इसके लिए इन दोनों भाषाओ में निपुण कर्मचारी ही नियुक्त होगा , जाहिर है जो की उत्तराखंड का रहने वाला ही कोई युवक/युवती होंगे ।
7. उत्तराखंड के ग्रामीण युवाओ को भी रोजगार मिलेगा ।
8. इसके लिए कुछ कॉल सेण्टर शायद पहाड़ो में भी खोले जा सकेंगे और पलायन पर भी रोक लगेगी ।
ये कदम शायद भविष्य में हमारी भाषाओ को राज्य भाषा का दर्जा एवं संविधान के आठवे अनुसूची
में शामिल करने लिए सहायक हो |शायद इस से एक नयी शुरुवात हो ,ये हमारी भाषाओ के लिए बड़े सम्मान की बात होगी, और ये कदम लाखो उत्तराखंडियों की मुख पर जरूर मुस्कान लाएगी |
आशा है आप मेरे इस विचार पर गौर करेंगे , आपके उत्तर की प्रतीक्षा में |प्रणाम |
धन्यवाद
दीपेंद्र
सिंह नेगी "दीप"
सदस्य (सोच - "सोशल आर्गेनाइजेशन फॉर कनेक्टिंग हैप्पीनेस" उत्तराखंड)